ज्यों ही यह सपष्ट हो जाता है की अन्तर्सम्बंधिय कलह का कारक व्यक्तित्व विकार से उत्पन्न अभद्र व्यव्हार हैं, मात्र अनुचित व्यवहार नहीं, तब फिर उसके आगे उचित व्यवहारों की सीख देना या टिपण्णी करना अपने में एक दर्द देयक कर्म हो जाता है उनके ऊपर जो की व्यतित्व विकार की पीड़ा को वहन कर रहा होता है।
No comments:
Post a Comment